Devotional Hyms - Devi
।।श्रीः।। |
यदन्नादिभिः पञ्चभिः कोशजालैः |
विरिञ्चादिरूपैः प्रपञ्चे विहृत्य |
विनोदाय चैतन्यमेकं विभज्य |
समाकुञ्च्य मूलं हृदि न्यस्य वायुं |
शरीरेऽतिकष्टे रिपौ पुत्रवर्गे |
शरीरे धनेऽपत्यवर्गे कलत्रे |
मृषान्यो मृषान्यः परो मिश्रमेनं |
निवृत्तिः प्रतिष्ठा च विद्या च शान्ति |
अगाधेऽत्र संसारपङ्के निमग्नं |
समारभ्य मूलं गतो ब्रह्मचक्रं |
गणेशैर्ग्रहैरम्ब नक्षत्रपङ्क्त्या |
लसत्तारहारामतिस्वच्छचेलां |
समुद्यत्सहस्रार्कबिम्बाभवक्त्रां |
मणिस्यूतताटङ्कशोणास्यबिम्बां |
महामन्त्रराजान्तबीजं पराख्यं |
तथान्ये विकल्पेषु निर्विण्णचित्ता |
त्वदुन्मेषलीलानुबन्धाधिकारा |
कदा वा भवत्पादपोतेन तूर्णं |
कदा वा हृषीकाणि साम्यं भजेयुः |
नमोवाकमाशास्महे देवि युष्म |
कचे चन्द्ररेखं कुचे तारहारं |
शरेष्वेव नासा धनुष्वेव जिह्वा |
जगत्कर्मधीरान्वचोधूतकीरान् |
सुधासिन्धुसारे चिदानन्दनीरे |
दृगन्ते विलोला सुगन्धीषुमाला |
जगज्जालमेतत्त्वयैवाम्ब सृष्टं |
इति प्रेमभारेण किञ्चिन्मयोक्तं |