Preliminary Texts
।।श्रीः।। |
अहमेव परं ब्रह्म निश्चितं चित्त चिन्त्यताम्। |
अहमेव परं ब्रह्म न चाहं ब्रह्मणः पृथक्। |
सर्वोपाधिविनिर्मुक्तं चैतन्यं च निरन्तरम्। |
अहं ब्रह्मास्मि यो वेद स सर्वं भवति त्विदम्। |
अन्योऽसावहमन्योऽस्मीत्युपास्ते योऽन्यदेवताम्। |
अहमात्मा न चान्योऽस्मि ब्रह्मैवाहं न शोकभाक्। |
आत्मानं सततं ब्रह्म संभाव्य विहरन्ति ये। |
आत्मानं सततं ब्रह्म संभाव्य विहरेत्सुखम्। |
तन्महापातकं हन्ति तमः सूर्योदयो यथा। |
आकाशाद्वायुरुत्पन्नो वायोस्तेजस्ततः पयः। |
पृथिव्यप्सु पयो वह्नौ वह्निर्वायौ नभस्यसौ। |
अहं विष्णुरहं विष्णुरहं विष्णुरहं हरिः। |
अच्युतोऽहमनन्तोऽहं गोविन्दोऽहमहं हरिः। |
नित्योऽहं निर्विकल्पोऽहं निराकारोऽहमव्ययः। |
अकर्ताहमभोक्ताहमसङ्गः परमेश्वरः। |
आदिमध्यान्तमुक्तोऽहं न बद्धोऽहं कदाचन। |
ब्रह्मैवाहं न संसारी मुक्तोऽहमिति भावयेत्। |
यदभ्यासेन तद्भावो भवेद्भ्रमरकीटवत्। |
ध्यानयोगेन मासैकाद्ब्रह्महत्त्यां व्यपोहति। |
यावज्जीवं सदाभ्यासाज्जीवन्मुक्तो भवेद्यतिः। |
न मनोऽहं न बुद्धिश्च नैव चित्तमहंकृतिः। |
न चाकाशो न शब्दश्च न च स्पर्शस्तथा रसः। |
सदा साक्षिस्वरूपत्वाच्छिव एवास्मि केवलः। |
मयि सर्वं लयं याति तद्ब्रह्मास्म्यहमद्वयम्। |
आनन्दः सत्यबोधोऽहमिति ब्रह्मानुचिन्तनम्। |
अत्र प्रमाणं वेदान्ता गुरवोऽनुभवस्तथा। |
नाहं देहो न मे देहः केवलोऽहं सनातनः। |
हृदयकमलमध्ये दीपवद्वेदसारं |